Sunday 3 May 2009

ये कैसी चाहत...??


हर इंसान अपनी जिन्दगी में स्वतंत्रता चाहता है लेकिन प्रायः यह समझ नहीं पता कि उसे कितनी स्वतंत्रता चाहिए और किन चीजों कि स्वतंत्रता चाहिए इन्सान को जब थोड़ी स्वतंत्रता मिलती है तो वह और की अपेक्षा करने लगता है लेकिन यह कोई भी समझने को तैयार नहीं की स्वतंत्रता भी सापेक्ष होती है हो सकता है की हम सभी मामलों में स्वतंत्र हों, लेकिन सामाजिक दायित्वों और भावनात्मक रूप से बंधे हों मगर स्वतंत्रता की चाहत इंसान पर कई बार इतना हावी हो जाता है कि लोग इसकी तलाश में सामाजिक दायित्वों और भावनात्मक लगावों को भी ताख पर रख देते हैं उन्हें लगता है कि इन सब से जुदा होकर वह जीवन में कुछ खास हासिल कर लेंगे लेकिन हकीक़त में होता है ठीक इसके उलटा हीं

जो
लोग अपने ऊपर किसी तरह का बंधन महसूस नहीं करते,वे प्रायः कोई बड़ा लक्ष्य हासिल नहीं कर पाते उलटे वह अपनी सुख कि चाहत में बहुतों को दुखी कर डालते हैं और एक वक्त ऐसा भी आता है जब इंसान जिस सुख के लिए अपने दायित्वों के साथ -साथ अपने लोगों को ठुकराया था , तो वे लोग उसके पास रह जाते हैं, ना ही वह ख़ुद सुखी रह पाता है कुल मिलकर इंसान अपने लोगों के साथ-साथ अपना सुख भी खो देता हैं लेकिन दबाव या बंधन को स्वीकार कर के उसके बीच रहने वाले लोग अपने सीमित अवसर का ही सर्वोतम इस्तेमाल करने कि कोशिश करते हैं और इस क्रम में कई बार असाधारण उपलब्धियां हासिल कर लेते हैं ऐसे लोग दूसरों को भी सुखी बनते हैं और ख़ुद भी खुश रहते हैं इसलिए मैं तो कहता हूँ कि इंसान को ख़ुद के साथ-साथ सामाजिक दायित्वों को भी साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए

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