Friday 15 May 2009

जरा सोच उस पल के बारे में




"बुरा ढूढ़न मैं चला, बुरा न मिलियो कोय,
ख़ुद में जो बुरा ढूढे, मुझसे बुरा न कोय"



( कबीर के इस दोहे के साथ यह रचना उस दोस्त की दोस्ती के नाम, जो कोरे कागज पर लिखी दोस्ती की इबादत तो पढ़ने की कोशिश की, लेकिन उस कोरे कागज की सादगी ही पढ़ना भूल गई...बुरे वक्त में हौसला तो बढ़ाया लेकिन अकारण ही अपने पैरों के तले उस हौसले के साथ-साथ विश्वाश को भी कुचल डाला...)


जरा सोच उस पल के बारे में
जब हम अपने मन मन्दिर में
प्यार के फूल सजाये होंगे
दिल के भीतर कैसे-कैसे
ख्वाब जगाये होंगे
उस प्यार की खातिर
भवरे की तरह न जाने
कितने गीत गुनगुनाये होंगे...

जरा सोच उस पल के बारे में
तू कहती मैंने तेरा साथ है छोड़ा
जब की आज भी तेरे अच्छे के लिये
इश्वर के आगे हाथ को जोड़ा
मैं रहूँ या न रहूँ तेरे साथ
मेरी दूआयें नहीं छोड़ेगी तेरा हाथ ...

जरा सोच उस पल के बारे में
जब तू ख़ुद अपने आगन में
नीम के पेड़ लगाए होंगे
प्यार के भ्रूण को मिटाए होंगे
उस दोस्ती का क्या था कसूर
जिसके निशां, ख़ुद अपने
हाथों से मिटाए होंगे...

जरा सोच उस पल के बारे में
जब हमने बिरह के दिन काटे
तड़प के आंहे भर- भर के
न जाने कितने रात आंसूओं
के संग बिताये होंगे
मन में उठी उस खुशी को
ख़ुद कैसे गले दबाये होंगे...





Sunday 3 May 2009

ये कैसी चाहत...??


हर इंसान अपनी जिन्दगी में स्वतंत्रता चाहता है लेकिन प्रायः यह समझ नहीं पता कि उसे कितनी स्वतंत्रता चाहिए और किन चीजों कि स्वतंत्रता चाहिए इन्सान को जब थोड़ी स्वतंत्रता मिलती है तो वह और की अपेक्षा करने लगता है लेकिन यह कोई भी समझने को तैयार नहीं की स्वतंत्रता भी सापेक्ष होती है हो सकता है की हम सभी मामलों में स्वतंत्र हों, लेकिन सामाजिक दायित्वों और भावनात्मक रूप से बंधे हों मगर स्वतंत्रता की चाहत इंसान पर कई बार इतना हावी हो जाता है कि लोग इसकी तलाश में सामाजिक दायित्वों और भावनात्मक लगावों को भी ताख पर रख देते हैं उन्हें लगता है कि इन सब से जुदा होकर वह जीवन में कुछ खास हासिल कर लेंगे लेकिन हकीक़त में होता है ठीक इसके उलटा हीं

जो
लोग अपने ऊपर किसी तरह का बंधन महसूस नहीं करते,वे प्रायः कोई बड़ा लक्ष्य हासिल नहीं कर पाते उलटे वह अपनी सुख कि चाहत में बहुतों को दुखी कर डालते हैं और एक वक्त ऐसा भी आता है जब इंसान जिस सुख के लिए अपने दायित्वों के साथ -साथ अपने लोगों को ठुकराया था , तो वे लोग उसके पास रह जाते हैं, ना ही वह ख़ुद सुखी रह पाता है कुल मिलकर इंसान अपने लोगों के साथ-साथ अपना सुख भी खो देता हैं लेकिन दबाव या बंधन को स्वीकार कर के उसके बीच रहने वाले लोग अपने सीमित अवसर का ही सर्वोतम इस्तेमाल करने कि कोशिश करते हैं और इस क्रम में कई बार असाधारण उपलब्धियां हासिल कर लेते हैं ऐसे लोग दूसरों को भी सुखी बनते हैं और ख़ुद भी खुश रहते हैं इसलिए मैं तो कहता हूँ कि इंसान को ख़ुद के साथ-साथ सामाजिक दायित्वों को भी साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए

Friday 24 April 2009

Life Is No Fairy Tale


She a river
I a person
Flowing with overflowing river
Defying waves to emerge out

But defeat is what i get

What to do?
How to go?

My soul

Will it submerge

or unscathed, it will emerge
to leave me alone

with my loneliness

I loved her truly

But what I got
was Judas Kiss....
Now I realize

Life is no fairy tale....

Wednesday 22 April 2009

प्रेम का भिखारी


(मैं प्रेम का भिखारी, इस विश्व भंडार में ह्रदय के समर्पण खोज रहा था...परन्तु समुद्र मंथन में हलाहल विष का ही प्रथम उद्दभव हुआ..अमृत संधान नहीं हुआ...)

पड़ जाता है जब चस्का
मोहक प्रेम सुधा पिने का,
सारा स्वाद बदल जाता है
दुनियां में जीने का....

किसी को नशा होता है
जहाँ में ख़ुशी का
हमें तो साथ मिला
गमे हाल जिन्दगी का....

कोई पी रहा है
लहू आदमी का
हर दिल में मस्ती रचाई है
सब कुछ ख़त्म हो चूका
न जाने फिर फिर भी क्यूँ
आज भी आसरा है उन्हीं का....

वो आँखों में हमेशा रही
लेकिन कभी हाल न लिया
मेरे दिल का
कश्ती की मुसाफिर थी वो
कभी देखा न समंदर मेरे अन्दर का...

मैं समझा,
दो लफ्जों की प्रेम कहानी
उन्हें तो चाहिए था बस,
दो पल की जिंदगानी
न मालूम किस जुर्म का
सजा दिया उसने
जख्म दे गयी वो
पुरे जिन्दगी का....


Friday 17 April 2009

A land of joy


Lo! the tricolor wafts up there!
A billion hearts lift up in the air!
India, my sweet, beloved country,
A land of joy to all and sundry.

A rich heritage built on tradition,
Enduring values make the great nation.
The spiritual land with a hoary past,
The pristine cultures so varied and vast.

The shining palaces, towering scrapers in view,
Keep you live both in the old and the new.
The verdant mountains and rivers abound in joy,
On a spiritual journey so great to enjoy!

Green fields dance, they at work on song,
Passing clouds romance, trees that animals throng.
The Nature's country lives in villages
Whose pleasant folk sustain threw' ages!

My country is not one of prosperity,
But strong in unity amidst diversity.
And my real joy is not to be rich and greedy,
But to serve my fellow poor and needy.

Monday 13 April 2009

ये कैसा मूल्यांकन..??


("अभी हाल में लगातार दो-दो इंटरव्यू में मिली असफलता ने मुझे मुझे झकझोर कर रख दियाइन असफलताओं से मैं इतना आहात हुआ की मुझे हँसना और रोना दोनों एक साथ रहा थाआप भी सोचेंगे की हँसना और रोना दोनों एक साथ कैसे सम्भव है ? तो जनाब मैं हंस रहा था अपनी किस्मत पर, और रो रहा था अपनी असफलता परलेकिन हँसी में तो वो खनक थी, ना हीं आंसुओ में वो धारये तो महज एहसासों का संगम थाएक पल तो मैं बेहद घबरा भी गया था और मैं ख़ुद को भविष्य के गर्त में खोता हुआ पा रहा थालेकिन फि मैंने आपने मन के भीतर झाका और दिल से पूछा तो कुछ इस तरह आवाज़ आयी...")

हम ऐसे समाज में जी रहे हैं जहाँ मूल्यांकन का तरीका हीं कुछ इस कदर है। बचपन से हीं हम इम्तिहान में बैठते आ राहे हैं जहाँ पूछे सवालों का जवाब लिखना होता है और एक शिक्षक उसका मूल्यांकन करता है। जबकि जरुरी नहीं है की, शिक्षक को पहले से उन सारे सवालों के जवाब पता हों। जरुरी नहीं की हमारे जगह यदि शिक्षक को इम्तिहान में बैठा दिया जाय तो वह हमसे बेहतर अंक लायें। उसी तर्ज़ पर आगे चलकर युवा अवस्था में नौकरी पाने के लिए इंटरव्यू बोर्ड के सामने पेश होना होता है। बोर्ड के सदस्य अपने-अपने सवाल पूछते हैं। इंटरव्यू देने दौरान हमें उन सवालों का जवाब देना होता है,उसके आधार पर बोर्ड के सदस्य हमारा मूल्यांकन करते है। कुल मिलकर उस 10-15 मिनट के मौखिक सवाल जवाब के आधार पर हमारा भविष्य तैय कर दिया जाता है। यदि हम बोर्ड के सदस्यों से अपने मन का सवाल पूछ लें तो, जरुरी नहीं कि वे बेहतर जवाब दे पायें। सम्भव है,वे कुछ भी नहीं बता पायें। दफ्तर में, क्लास में या रियलिटी शो में कहीं भी मूल्यांकन करने वाले को श्रेष्ठ मान लिया जाता है और उम्मीदवार को उनकी तुलना में छोटे और कमतर। लेकिन यह सच हो, मैं तो ऐसा कतई जरुरी नही मानता। इसलिए मैं तो कहता हूँ मूल्यांकन के नतीजों पर नहीं, ख़ुद पर भरोसा करना चाहिए। यही हमारी जिन्दगी को आगे या पीछे ले जाने का मूलमंत्र साबित होती है। इसी सोच ने हमे एक बार फ़िर से चट्टान कि तरह नई चुनौतियों के लिए खड़ा कर दिया है। अब तक मैंने यही किया है, और आगे भी करूँगा। वैसे भी जिंदगी इन चंद सफलताओं और बिफलताओं पर ख़त्म नहीं हो जाती। चलते-चलते मै फ़िल्म "मदर - इंडिया " के इस गाने के साथ छोड़ जाता हूँ...अगले ब्लॉग तक...

"दुनियां में अगर आए हो तो जीना ही पड़ेगा, जिंदग है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा"

Saturday 11 April 2009

मेरे यार जुलाहे


मेरे यार जुलाहे
मुझको भी तरकीब बता दे कोई
अक्सर तुझको देखा है ताना बना बुनते
जब कोई धागा टूट गया तो
और सिरा कोई जोड़ के उसमें
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस बाने में लेकिन
एक भी गाँठ गिरह बुनकर की,
देख नहीं सकता कोई
मैंने तो एक बार बुना था
एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ़ नज़र आती है
मेरे यार जुलाहे,
मुझको भी तरकीब बता दे कोई...!

Wednesday 8 April 2009

रिश्तों के नाम


हवा के ताजे झोंके की
भीनी मदहोश खुशबु लिए
दिलों का मिलन
प्यार का वह सम्बन्ध
चाहत का एक मधुर सपना
अचानक ही सच हो गया...

रिश्तों के नाम की
भारी चादर ओढ़ते ही,
दिलों का यह अन्तरंग सम्बन्ध
जाने कैसे बदल गया
पता भी नहीं चला
वह कब घुटन से मर गया...

जिस स्पर्श ही सिरहन से
तनबदन सुलग जाता था
जिस साथ का एकएक क्षण
मन आँगन में बस जाता था,
पास होते हुए भी अब वह
जाने क्यूँ अपना नहीं रहा...

रिश्तों का नाम देते तो
जीने का सहारा तो होता
वह कोशिश होती, इन्तेजार होता,
मिलने को दिल बेकरार तो होता
अब तो तुम्हारा प्यार सिर्फ़
एक यादगार बन गया...

बातों के उस खूबसूरत
सिलसिले का
जाने कहाँ अंत हो गया
समझ ही नहीं आया
सबकुछ सही होते हुए भी
रिश्तों ने हमारे प्यार को
प्यार क्यूँ रहने दिया....

Monday 23 March 2009

हमने कभी सोचा न था



जिन्दगी की राह पर जब हुई थी तुम से मुलाकात
सताएगी जब सारी दुनिया तुम दोगी मेरा साथ
हमने कभी सोचा था......
जालिम ये दुनिया जब ढाएगी सितम
मुझपर लगाओगे प्यार के मरहम
देखते ही देखते हालात यूँ बदल जायेंगे
राहों में फूल ही फूल खिल जायेंगे
हमने कभी सोचा था.........
आँखों के आंसू यूँ मोती बनकर बिखरने लगेंगे
दिल के ख्वाब यूँ हकीकत बनकर बरसने लगेंगे
पत्थर समझे मुझे दुनिया वाले मैं मोम हूँ,
तेरे सिवा किसी ने छूकर नहीं देखा
लोग तो फूलों की सेज पर चलतें हैं
तुम काँटों को गले लगाओगे
हमने कभी सोचा था...........
जब दुनिया हमे ठुकराएगी
तुम मुझे अपनाओगे
बुद्धू समझेगी जब सारा जमाना
बनुगा मैं तेरा दीवाना
प्यार के नशे में झूमता हुआ
गाऊंगा मैं तेरा तराना
हमने कभी सोचा था....
अब खुदा से है एक ही गुजारिश
ढा लेना चाहे मुझपे जितना सितम
उसके क़दमों में देना कोई जखम
खुदा तेरी ही रहमो करम पे वो इठलायेगी
प्यार के दो मीठे बोल गुनगुनायेगी
हमने कभी सोचा था........

Thursday 12 March 2009

कुछ ऐसी रही होली हमारी


लगातार यह चौथा साल है जब मैंने अपने परिवार दूर होली बिताया है । लगातार यह चौथा साल है जब मैंने ना ही अपने माँ के चरणों में गुलाल रखे, ना ही अपने पिता को ललाट पर गुलाल लगा आशीर्वाद लिया है। लगातार यह चौथा साल रहा जब मुझे होली पर अपने माँ के हाथों का बना पुआ से महरूम रहना पड़ा । सच बताऊँ तो होली के दिन घर की बहुत याद आई और पुरे परिवार को मिस किया।
मैं मूलतः बिहार से हूँ जहाँ की इन रीती -रिवाजों स चलन है। वहां कुछ हो या ना हो, करीब हर अमीर-गरीब के घर में पुआ- पकवान बनता है। शाम के वक्त पुरूष-महिला अपने-अपने ग्रुप के साथ एक दुसरे के घर जातें हैं। एक दुसरे के साथ रंग गुलाल खेलने के बाद एक साथ बैठकर पुआ-पकवान का आनंद लेतें हैं, एक दुसरे से गले मिल बधाई देतें हैं।
भारत जैसे धर्म प्रधान और त्योहारों वाले देश में होली एक मात्र त्योहार है, जो किसी देवी देवता का सहारा लेकर नहीं पहुँचता। यह तो लोक पर्व है, मनुष्यता का पर्व और समाज का पर्व है। इसमें आप समाज को आप सर्वोपरि मानने की घोषणा करतें है। होली की तुलना किसी दुसरे पर्व से नहीं किया जा सकता। यह उन लोगों से पूछ सकतें है जो, जो होली से नफरत करतें हैं या हुडदंग में शामिल होतें हैं। या वो रंग खेलने निकाल पडतें हैं, या घर में छुप कर बैठ जाते हैं। अन्य त्योहारों में ऐसा नहीं होता या इसकी जरुरत नहीं पड़ती। ऐसे प्रेम और नफरत का रिश्ता एक साथ सिर्फ़ होली में ही दीखता है। होली तो भारत के सांस्कृतिक मानस में छुपा है। उस मानस में क्या है ? इसे हुल्लड़ और रंग्पशी रिवाजों से समझा जा सकता है। जब हम होली के दिन सज-सवर के बैठे होतें हैं, दोस्तों और रिश्तेदारों का एक हुजूम आता है और आप को बदशक्ल बना देता है। काले बाल में लाल गुलाल,गोरे चेहरे पर हरे रंग,सफ़ेद कुरते पर कीचड़-मिट्टी से पोत दिया जाता है। बदले में आप हँसते है, नाराज नहीं होते और उन्हें बधाई देतें हैं। बदकिस्मती से इस साल मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। ऐसा इस लिए होता है क्यूंकि हम अच्छे या बुरे रूप में स्वीकार करने के समाज के अधिकार को स्वीकार करते है। होली दरअसल हमें यही समझाती है कि जिंदगी के कई रंग ऐसे हैं, जिनमे डूबने के बाद हम सब एक जैसे होते हैं। हमारी वृतियों में,खुशियों में, मन के भीतर बैठे किसी बच्चे या युवा के नैसर्गिक उल्लास में कोई फर्क नहीं होता।
जब हम बदशक्ल बनाये जाने के डर से अपने ड्राइंग रूम को गन्दा किए जाने से नफरत करते हैं,तो असल में हम उस झूठे अंहकार से घिरे होते हैं। किसी ने हमे रंग लगा दिया,कपड़े गिले कर दिए,भागने को मजबूर कर दिया तो हमारी ठसक, हमारी वह नकली प्रतिष्ठा इज्जत कि कलई खोलती है। लेकिन जरा उन से कोई पूछे तो जब अपने लाडले के गाल पर एक लाल सा टीका कर भला क्यूँ खुश होते हैं ? या किसी भूत सा चेहरा लिए झूम-झूम कर होली गते लोगों को देखकर हँसी क्यूँ आती है ? जब आपकी प्रेमिका या पत्नी आपके ऊपर चुटकी भर गुलाल फेंक कर भागती है तब,आप भी उन्हें रंग या गुलाल लेकर उनके पीछे क्यूँ भागते हैं ? उन्हें रंग के क्यूँ निहाल हो जाते हैं। खैर मैं इन चीजों से इस साल दूर रहा और शायद असल मुद्दे से भटक गया......
होली के दिन हमारे ही मुहल्ले में रहने वाली एक दोस्त ने मुझे फ़ोन किया। मैंने उससे करीब दो घंटे में आने वादा किया। कुछ बानाने खाने के बाद अपने वादे के मुताबिक छत से पानी फेकने वालों से बचते बचाते उसके यहाँ पहुँच गया। हमलोग बिल्कुल साफ़ सुथरे दिख रहे थे होली का कोई रंग नहीं चढ़ा था। अब हमदोनों ने एक दुसरे को गुलाल लगाकर बधाई दी,और क्रिकेट मैच देखने बैठ गया। थोड़ी देर बाद न जाने उसके मन में क्या आया कि उसे बहार की होली देखने की ईक्षा जताई। मैंने भी मना नहीं किया और दोनों निकल पड़े। गली में निकलते ही रास्ते में मार पिट हो रही थी , नतीजा वहां से गुजरते वक्त जाने अंजाने मुझे भी एक हाथ लग गया। उस वक्त वहां कोई कुछ सुनने कि भी स्थिति में नहीं था। इसलिए हमदोनो आगे निकलते रहने में ही अपनी भलाई समझी। आगे गली में कहीं तो एकदम सन्नाटा था काही पर ढेर सारे लड़के शोर- शराबा कर रहे रहे थे। महिलाओं का तो नमो निशान नहीं था। कुछ लड़के तो चड्डी में ऐसे घूम रहे थे जैसे आज उनके सामने सूमो भी नहीं टिक सकता। पानी से पुरी गली गीली होने के कारण हमलोग आराम से बचते हुए चल रहे थे। वहां से गुजते वक्त कुछ लफंगों के टोन भी सहने पड़े लेकिन हमलोग आगे बढते रहने में ही भलाई समझा। गली से गुजरते वक्त एक जगह छत से हमलोगों पर पानी डाला गया। पानी से गीला होने पर उसके मुंह से "ओ शीट"..कि आवाज़ निकल गई। अब उन लड़को ने "इक्को माईक " कि तरह न जाने कितने बार आवाज़ निकाले। अब मैं करीब अपने घर के गली के पास पहुँचने वाला था। तभी एक लड़का दौड़ता हुआ आया और उसके ऊपर गुलाल डालते हुए " हैप्पी होली" कहा। गुस्से में मेरी दोस्त ने पुछा, आप मुझे जानतें है ? पलटकर उसने अंग्रेजी में कहा " व्हाट हैप्पेन, टुडे इज होली " मैंने बीच में आते हुए, उसे अपने साथ ले लिया। वह लड़का ऐसे हंसता हुआ वापस गया जैसे आज उसे कितनी बड़ी सफलता मिली हो। हमलोग अपनी बेवकूफी पर तो पछता रहे थे, लेकिन कोई चारा नहीं था। अब मैं अपने कमरे पर पहुँचने वाला था,और उसके यहाँ वापस जाने स्थिति में भी नहीं था। इस लिए मैंने माहौल शांत होने तक यहाँ ही रुकने को कहा। थोड़ी देर बाद हमलोगों के दो और कॉमन फ्रेंड आ गए। हम चारो ने आपस में थोड़ी देर मस्ती की। थोड़ी ही देर बाद मेरे जानकर दो लड़के नशे धुत आ धमके, और एक ने फोटो खीचा रही फ्रेंड के पास जाकर, साथ फोटो खिचाने की कोशिश करने लगा। मैंने उसे करीब खीचते हुए कमरे से बहार निकलकर छत पर ले गया। वहां पर कुछ समझाने की नाकाम कोशिश के बाद सीधा बहार का रास्ता दिखा दिया। कुल मिलकर रंग में भंग अभी भी जारी थी। अचानक हुई इस घटना से वह इतनी आहात हुई की वो रोने लगी। किसी तरह से समझा बुझा कर हमलोगों ने कार्ड खेलना शुरू कर दिया,ताकि इस मानशिक परेशानी से निकला जा सके। अब बहार में करीब शाम हो चुकी थी और माहौल भी शांत पड़ चुका था। सभीलोग अब अपने अपने घर चले गए।
मैं कमरे में अब अकेले रह गया था। इसलिए अपनी बोरियत दूर करने और होली के रंग में रंगने का एक आईडिया आया। मैंने बैठकर पेंटिंग बनाना शुरू कर दिया और देखते ही देखे करीब तीन-चार घंटों में मैंने एक खुबसूरत सी पेंटिंग बना डाली। जिसमें इन्सान और जानवर के बीच प्यार प्रतीत होता है। मुझे नही पता मैंने अपनी पेंटिंग में इन्सान और जानवर को ही क्यूँ दिखाया। बस दिल ने कहा और शुरू हो गया। इस तरह मैंने भी रंग तो खेला लेकिन कैनवस के साथ...... कुल मिलकर यह होली भी कभी न भूलने वाली कुछ खट्टी-मिठ्ठी यादों के साथ विदा हो गई......

Wednesday 11 March 2009

मैं भूल जाती हूँ


मैं भूल जाती हूँ!

जब आप मेरी दोस्त बनकर मुझसे ढेर सारी बातें करती हो

मैं भूल जाती हूँ की आपने अकेले कई पल बिताये होंगे

जब मुझे अपनी बातों से रात रात भर हसाती हो’

मैं भूल जाती हूँ कई सपनो को जागने से पहले सुलाए होंगे

जब कुछ समझ नही आता और में आकर गोद में छुप जाती हूँ

मैं भूल जाती हूँ की आपने दुनिया को समझने में कई साल लगाये होंगे

जब दूर जाती हूँ और आप मुस्कुरा कर हाथ हिलाती हो

मैं भूल जाती हूँ की इन हाथों से आपने अपने आँसू मिटाए होंगे

जब साथ में आपके गाना गाती हूँ और कुछ पलों को सजाती हूँ

मैं भूल जाती हूँ की आपने कई बरस बाद वो गीत गुनगुनाये होंगे

जब आपको दर्द पहुचाने वाले लोगो को आप समझने की कोशिश करती हो

मैं भूल जाती हूँ कि इन लोगो ने आपको समझने के लिए कुछ पल भी नही बिताये होंगे

जब मैं ख़ुद के लिए दूसरों से लड़ती हूँ और हार जाती हूँ

मैं भूल जाती हूँ की आपने ख़ुद से लड़ते हुए अपने कदम बढ़ाए होंगे

जब मैं ख़ुद को आगे बढ़ते हुए देख भगवान् को धन्यवाद देती हूँ

मैं भूल जाती हूँ की आपने क़दमों को पीछे करके अपने निशाँ मिटाए होंगे

मैं कुछ भी लौटा नही सकती

बीते पलों को सजा नही सकती

पर एक मम्मी चाहती हूँ जो आज सब कुछ भूलकर ज़िन्दगी को अपनाए

अपनी हँसी में छुपी भरी आवाज़ को हलके से गुनगुनाकर भूल जाए

मैं जानती हूँ आप नही भूलती क्यूंकि याद रखने के लिए पल नही मिलते

क्यूंकि बंज़र सी ज़मीन में पानी डालने पर वह फूल नही खिलते

पर साथ मिलकर हम नया बाग़ सजायेंगे और हम याद रखे ज़िन्दगी में कुछ ऐसे पल बिताएंगे.


अनामिका जोशी

(मेरी मम्मी को समर्पित )