Friday 15 May 2009

जरा सोच उस पल के बारे में




"बुरा ढूढ़न मैं चला, बुरा न मिलियो कोय,
ख़ुद में जो बुरा ढूढे, मुझसे बुरा न कोय"



( कबीर के इस दोहे के साथ यह रचना उस दोस्त की दोस्ती के नाम, जो कोरे कागज पर लिखी दोस्ती की इबादत तो पढ़ने की कोशिश की, लेकिन उस कोरे कागज की सादगी ही पढ़ना भूल गई...बुरे वक्त में हौसला तो बढ़ाया लेकिन अकारण ही अपने पैरों के तले उस हौसले के साथ-साथ विश्वाश को भी कुचल डाला...)


जरा सोच उस पल के बारे में
जब हम अपने मन मन्दिर में
प्यार के फूल सजाये होंगे
दिल के भीतर कैसे-कैसे
ख्वाब जगाये होंगे
उस प्यार की खातिर
भवरे की तरह न जाने
कितने गीत गुनगुनाये होंगे...

जरा सोच उस पल के बारे में
तू कहती मैंने तेरा साथ है छोड़ा
जब की आज भी तेरे अच्छे के लिये
इश्वर के आगे हाथ को जोड़ा
मैं रहूँ या न रहूँ तेरे साथ
मेरी दूआयें नहीं छोड़ेगी तेरा हाथ ...

जरा सोच उस पल के बारे में
जब तू ख़ुद अपने आगन में
नीम के पेड़ लगाए होंगे
प्यार के भ्रूण को मिटाए होंगे
उस दोस्ती का क्या था कसूर
जिसके निशां, ख़ुद अपने
हाथों से मिटाए होंगे...

जरा सोच उस पल के बारे में
जब हमने बिरह के दिन काटे
तड़प के आंहे भर- भर के
न जाने कितने रात आंसूओं
के संग बिताये होंगे
मन में उठी उस खुशी को
ख़ुद कैसे गले दबाये होंगे...





Sunday 3 May 2009

ये कैसी चाहत...??


हर इंसान अपनी जिन्दगी में स्वतंत्रता चाहता है लेकिन प्रायः यह समझ नहीं पता कि उसे कितनी स्वतंत्रता चाहिए और किन चीजों कि स्वतंत्रता चाहिए इन्सान को जब थोड़ी स्वतंत्रता मिलती है तो वह और की अपेक्षा करने लगता है लेकिन यह कोई भी समझने को तैयार नहीं की स्वतंत्रता भी सापेक्ष होती है हो सकता है की हम सभी मामलों में स्वतंत्र हों, लेकिन सामाजिक दायित्वों और भावनात्मक रूप से बंधे हों मगर स्वतंत्रता की चाहत इंसान पर कई बार इतना हावी हो जाता है कि लोग इसकी तलाश में सामाजिक दायित्वों और भावनात्मक लगावों को भी ताख पर रख देते हैं उन्हें लगता है कि इन सब से जुदा होकर वह जीवन में कुछ खास हासिल कर लेंगे लेकिन हकीक़त में होता है ठीक इसके उलटा हीं

जो
लोग अपने ऊपर किसी तरह का बंधन महसूस नहीं करते,वे प्रायः कोई बड़ा लक्ष्य हासिल नहीं कर पाते उलटे वह अपनी सुख कि चाहत में बहुतों को दुखी कर डालते हैं और एक वक्त ऐसा भी आता है जब इंसान जिस सुख के लिए अपने दायित्वों के साथ -साथ अपने लोगों को ठुकराया था , तो वे लोग उसके पास रह जाते हैं, ना ही वह ख़ुद सुखी रह पाता है कुल मिलकर इंसान अपने लोगों के साथ-साथ अपना सुख भी खो देता हैं लेकिन दबाव या बंधन को स्वीकार कर के उसके बीच रहने वाले लोग अपने सीमित अवसर का ही सर्वोतम इस्तेमाल करने कि कोशिश करते हैं और इस क्रम में कई बार असाधारण उपलब्धियां हासिल कर लेते हैं ऐसे लोग दूसरों को भी सुखी बनते हैं और ख़ुद भी खुश रहते हैं इसलिए मैं तो कहता हूँ कि इंसान को ख़ुद के साथ-साथ सामाजिक दायित्वों को भी साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए

Friday 24 April 2009

Life Is No Fairy Tale


She a river
I a person
Flowing with overflowing river
Defying waves to emerge out

But defeat is what i get

What to do?
How to go?

My soul

Will it submerge

or unscathed, it will emerge
to leave me alone

with my loneliness

I loved her truly

But what I got
was Judas Kiss....
Now I realize

Life is no fairy tale....

Wednesday 22 April 2009

प्रेम का भिखारी


(मैं प्रेम का भिखारी, इस विश्व भंडार में ह्रदय के समर्पण खोज रहा था...परन्तु समुद्र मंथन में हलाहल विष का ही प्रथम उद्दभव हुआ..अमृत संधान नहीं हुआ...)

पड़ जाता है जब चस्का
मोहक प्रेम सुधा पिने का,
सारा स्वाद बदल जाता है
दुनियां में जीने का....

किसी को नशा होता है
जहाँ में ख़ुशी का
हमें तो साथ मिला
गमे हाल जिन्दगी का....

कोई पी रहा है
लहू आदमी का
हर दिल में मस्ती रचाई है
सब कुछ ख़त्म हो चूका
न जाने फिर फिर भी क्यूँ
आज भी आसरा है उन्हीं का....

वो आँखों में हमेशा रही
लेकिन कभी हाल न लिया
मेरे दिल का
कश्ती की मुसाफिर थी वो
कभी देखा न समंदर मेरे अन्दर का...

मैं समझा,
दो लफ्जों की प्रेम कहानी
उन्हें तो चाहिए था बस,
दो पल की जिंदगानी
न मालूम किस जुर्म का
सजा दिया उसने
जख्म दे गयी वो
पुरे जिन्दगी का....


Friday 17 April 2009

A land of joy


Lo! the tricolor wafts up there!
A billion hearts lift up in the air!
India, my sweet, beloved country,
A land of joy to all and sundry.

A rich heritage built on tradition,
Enduring values make the great nation.
The spiritual land with a hoary past,
The pristine cultures so varied and vast.

The shining palaces, towering scrapers in view,
Keep you live both in the old and the new.
The verdant mountains and rivers abound in joy,
On a spiritual journey so great to enjoy!

Green fields dance, they at work on song,
Passing clouds romance, trees that animals throng.
The Nature's country lives in villages
Whose pleasant folk sustain threw' ages!

My country is not one of prosperity,
But strong in unity amidst diversity.
And my real joy is not to be rich and greedy,
But to serve my fellow poor and needy.

Monday 13 April 2009

ये कैसा मूल्यांकन..??


("अभी हाल में लगातार दो-दो इंटरव्यू में मिली असफलता ने मुझे मुझे झकझोर कर रख दियाइन असफलताओं से मैं इतना आहात हुआ की मुझे हँसना और रोना दोनों एक साथ रहा थाआप भी सोचेंगे की हँसना और रोना दोनों एक साथ कैसे सम्भव है ? तो जनाब मैं हंस रहा था अपनी किस्मत पर, और रो रहा था अपनी असफलता परलेकिन हँसी में तो वो खनक थी, ना हीं आंसुओ में वो धारये तो महज एहसासों का संगम थाएक पल तो मैं बेहद घबरा भी गया था और मैं ख़ुद को भविष्य के गर्त में खोता हुआ पा रहा थालेकिन फि मैंने आपने मन के भीतर झाका और दिल से पूछा तो कुछ इस तरह आवाज़ आयी...")

हम ऐसे समाज में जी रहे हैं जहाँ मूल्यांकन का तरीका हीं कुछ इस कदर है। बचपन से हीं हम इम्तिहान में बैठते आ राहे हैं जहाँ पूछे सवालों का जवाब लिखना होता है और एक शिक्षक उसका मूल्यांकन करता है। जबकि जरुरी नहीं है की, शिक्षक को पहले से उन सारे सवालों के जवाब पता हों। जरुरी नहीं की हमारे जगह यदि शिक्षक को इम्तिहान में बैठा दिया जाय तो वह हमसे बेहतर अंक लायें। उसी तर्ज़ पर आगे चलकर युवा अवस्था में नौकरी पाने के लिए इंटरव्यू बोर्ड के सामने पेश होना होता है। बोर्ड के सदस्य अपने-अपने सवाल पूछते हैं। इंटरव्यू देने दौरान हमें उन सवालों का जवाब देना होता है,उसके आधार पर बोर्ड के सदस्य हमारा मूल्यांकन करते है। कुल मिलकर उस 10-15 मिनट के मौखिक सवाल जवाब के आधार पर हमारा भविष्य तैय कर दिया जाता है। यदि हम बोर्ड के सदस्यों से अपने मन का सवाल पूछ लें तो, जरुरी नहीं कि वे बेहतर जवाब दे पायें। सम्भव है,वे कुछ भी नहीं बता पायें। दफ्तर में, क्लास में या रियलिटी शो में कहीं भी मूल्यांकन करने वाले को श्रेष्ठ मान लिया जाता है और उम्मीदवार को उनकी तुलना में छोटे और कमतर। लेकिन यह सच हो, मैं तो ऐसा कतई जरुरी नही मानता। इसलिए मैं तो कहता हूँ मूल्यांकन के नतीजों पर नहीं, ख़ुद पर भरोसा करना चाहिए। यही हमारी जिन्दगी को आगे या पीछे ले जाने का मूलमंत्र साबित होती है। इसी सोच ने हमे एक बार फ़िर से चट्टान कि तरह नई चुनौतियों के लिए खड़ा कर दिया है। अब तक मैंने यही किया है, और आगे भी करूँगा। वैसे भी जिंदगी इन चंद सफलताओं और बिफलताओं पर ख़त्म नहीं हो जाती। चलते-चलते मै फ़िल्म "मदर - इंडिया " के इस गाने के साथ छोड़ जाता हूँ...अगले ब्लॉग तक...

"दुनियां में अगर आए हो तो जीना ही पड़ेगा, जिंदग है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा"

Saturday 11 April 2009

मेरे यार जुलाहे


मेरे यार जुलाहे
मुझको भी तरकीब बता दे कोई
अक्सर तुझको देखा है ताना बना बुनते
जब कोई धागा टूट गया तो
और सिरा कोई जोड़ के उसमें
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस बाने में लेकिन
एक भी गाँठ गिरह बुनकर की,
देख नहीं सकता कोई
मैंने तो एक बार बुना था
एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ़ नज़र आती है
मेरे यार जुलाहे,
मुझको भी तरकीब बता दे कोई...!