
"आज त बहुत खुशी भईबे कईल, लेकिन हमके ओ दिन अधिक खुशी भईल रहल,जब ओकरे ओठ के सी के डाक्टर साहब ओके ठीक कर दिहले रहले। हमरे बिटिया के गाँव के लोग होंठकटवा कहें और ऊ रोअत भयल, घरे आवे तो कई बार हमरा के भी आंसू निकल आवे। लेकिन जोन दिन ओकरा आपरेशन भयल हमरे बिटिया के साथ हमरे खुशी के भी ठिकाना न रहल"
ये चंद लाइन पिंकी की माँ ने ऑस्कर अवार्ड की घोषणा के बाद कहे थे...जी हाँ ..वही पिंकी जिसे कल तक लोंग होंठकटवा कह कर चिढाते थे। लेकिन गाँव की इस बिटिया ने आज अपने गाँव के साथ- साथ पुरे देश को मुस्कराने का मौका दिया है। लॉस एंजिलिस के 81 वें ऑस्कर अवार्ड समारोह में "स्लमडॉग मिलिनयर " की सफलता और तीन भारतियों को मिले ऑस्कर अवार्ड से , सारे देश के साथ- साथ मुझे भी खुशी हुई। लेकिन उस से भी ज्यादा खुशी हमें अपने मज़दूर बाप के साथ रेड कारपेट पर खड़ी मुस्कराती हुई पिंकी को देख कर हुई। और मैं तो कहता हूँ मेरे साथ - साथ सारे देश को इस बिटिया पर नाज़ होना चाहिए। पिंकी उस राजेन्द्र सोनकर की बेटी है जो कल तक सिर्फ़ 40 किलोमीटर दूर बनारस का रास्ता तक ठीक से नही देखा था।
लेकिन आज अपनी बिटिया की बदौलत वह अमेरिका के ऑस्कर जैसे समारोह में शरीक हुआ। कल तक जो माँ अपनी बेटी की मौत चाहती थी,आज वही माँ -पलक पावड़े बिछाए अपनी बेटी का अमेरिका से लौटना का इनतेजार कर रही होगी। छह भाई बहनों में 8 वर्षीय सबसे छोटी पिंकी ने जैसे गाँव का कायापलट कर दिया हो। कल जब टीवी पर न्यूज़ देख रहा था, तो सचमुच अध्भुत नज़ारा था। रामपुर डबही गाँव के लोग खुशी से ऐसे नाच,झूम और गले मिल रहे थे जैसे मानो ऑस्कर पुरे गाँव को मिल गया हो। भले ही इन भोले - भले गाँव वालों को ऑस्कर का मतलब भी पता न हो। लेकिन इतना तो वो समझ ही रहे थे की उनके गाँव की इस बिटिया ने सारे गाँव को दुनिया के नक्शे पर उजागर कर दिया है। पिंकी की सफलता के लिए गाँव में मन्नतें रखी जा रही थी। पहाडियों के बिच स्थित इस गाँव में कल तक शायद ही कभी- कोई नेता या अफसर पहले आया हो। लेकिन आज जब पिंकी पर बनी डॉकमेंट्री चर्चित हुई तो, आज सभी लोग बारी -बारी से आने लगे। अब तो पिंकी की वजह से गावं की कायापलट की भी उम्मीद की जा रही है।
धन्य हो उस सोशल वर्कर का जिसने पिंकी का ऑपरेशन कराया, धन्य हो वह अमेरिकी फ़िल्म निर्माता, जिसने ऐसे सब्जेक्ट पर डॉकमेंट्री बनाई। आज इनलोगों की अथक प्रयास के वजह से ही पिंकी के साथ-साथ पुरा गाँव और देश मुस्करा रहा है। इन सब के बिना ये सब मुश्किल था। शायद अब पिंकी की सफलता से वे सभी माँ- बाप भी सबक ले सकेंगे, जिनके बच्चे मानशिक या शारीरिक रूप से विकलांग है।बेटे और बेटियों के बिच की गहरी खाई को पाट सकेंगे। वैसे न जाने आज भी हमारे देश में कितनी पिंकी पैदा होने से पहले ही मार दी जाती है। पिंकी तो हर गाँव में मौजूद होती है,बस जरुरत है उन्हें परखने और तरासने की। उम्मीद करता हूँ हम भारतीय भी अपनी मानशिकता बदलकर एक नए भारत की नीव रख सकेंगे। लेकीन इसके लिए हम सब को मिलकर एकसाथ प्रयास करना होगा...तो आईये आज सपथ लें एक नए भारत के निर्माण की....तब तक यही कहेंगे "स्माईल इंडिया विथ स्माईल" पिंकी......