बात ऊन दिनों की है, जब मैं अपनी सिस्टर के साथ पटना में रहता था। शाम के करीब ६-६.३० का वक्त रहा होगा। मैं अपने फ्लैट से निकल कर अपने कज़न के यहाँ जा रहा था। शाम का वक्त होने के कारण मुहल्ले के लोग अपने - अपने गैलरी में कुर्सी लगाकर आराम की मुद्रा में बैठे हुए थे। हमारे आगे के फ्लैट में रहने वाली पड़ोस की लड़की भी अपने फ्लैट के गेट के बगल में चेयर लगाकर, रेलिंग से पैर लगाकर बैठी हुई थी। मेरे फ्लैट का रास्ता उसके फ्लैट से होकर ही गुजरता था। मैं उसके पास जाकर पैर हटाने की गुजारिश किया। वो मेरी बातों को अनसुना करते हुए,अचानक मेरी हाथों को पकड़ एकटक मेरे चेहरे को देखने लगी। अचानक हुई इस घटना से मै भौचक रह गया और मेरे शरीर के सारे रोएँ खड़े हो गए। सच बताऊँ तो उस वक्त मै बेहद डर भी गया था। डर भी क्यूँ न हो बगल में ही उसके फ्लैट का मेन दरवाज़ा था जहाँ की उसका भरा पुरा परिवार रहता था। साथ ही आस पास के बिल्डिंगों में भी लोग बैठे थे। बहरहाल मैंने किसी तरह से हाथ खीचकर कर छुड़ाया जो पुरे हथेली से होते हुए एक ऊँगली पर आ कर छुटा। अब ना मै कुछ बोल सका और ना वो, मैं सीधा अपने कजन के यहाँ चला गया। अब तो इस घटना के बाद जैसे मेरी बोलती हीं बंद हो गयी। हमेशा बोलने की आदत और उस दिन अचानक चुप बैठा देख मेरे कजन ने मुझसे पूछा , क्या बात है आज आप चुप क्यूँ हैं ? पहले तो मैंने कुछ नहीं कह के बात को टालने की कोशिश की, लेकिन फ़िर प्रेस करने पर मैंने सब कुछ सच- सच बता दिया। अब पुरी बात सुनने के बाद वो पहले तो मुस्कुराए, फ़िर उन्होंने कुछ टिप्स दिए। वो अलग बात है, की इसका कोई खास असर नही हुआ।
इधर वो अब अपनी छोटी बहन को ले जाने के बहाने हमारे फ्लैट तक आने लगी थी। उसकी छोटी बहन जो अक्सर मेरे यहाँ आ जाया करती थी, जो की मेरी भांजी के हमउम्र थी। इसी तरह उसकी दोस्ती अब मेरी सिस्टर से भी हो गयी थी। कई बार जब वो मेरे यहाँ से आ रही होती थी तो,कभी कभी मेरा सामना उससे रेलिंग पर हो जाता था। इस दौरान वो कभी मेरे चेहरे से तो कभी पेट से छेड़ छाड़ कर देती थी। ये मुझे पसंद नही था लेकिन जगह नही होने के कारण मैं भी खुल के बोल नही पा रहा था। उस वक्त मेरी भी उमर करीब १६-१७ रही होगी। इस वजह से मैं भी ऐसे हालत को समझ नही पा रहा था। थोड़े दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। एक दिन तो हद हो गयी जब मैं खाना बना रहा था और वो मेरे किचेन में आ गयी। उस समय मेरी सिस्टर फैमली के साथ शादी में गयी हुयी थी। किचेन में आकर वो मेरे हाथ से छोलनी लेकर बोलने लगी आज मैं खाना बनाउंगी, और शुरू भी हो गयी। मुझे इस वक्त सबसे ज्यादा अपनी बुद्दी मकानमालकिन के आने का डर लग रहा था। जो अचानक कही भी आ धमकती थी। अब मुझे गुस्सा आ रहा था और किसी के देख लेने का डर भी हो रहा था। पर वो सुनने को तैयार नही हो रही थी। मैंने उसे बोला तुम ख़ुद तो बदनाम होगी ही और मुझे पुरे परिवार के साथ बदनाम करोगे। पता नही कभी वो मुझे अच्छी भी क्यूँ नही लगी। तभी मैंने कहा अभी १० मिनट में भइया (कजन) आयेंगे खाना खाने के लिए, अगर तुम्हे देख लिया तो डांट पड़ेगी। तब जाकर वो जल्दी से भागने लगी लेकिन वो जाते जाते मेरे शरीर पर एक हाथ रख दिया, मैंने भी उसे गुस्से में एक हाथ दिया। जब हमारे कज़न आए तो मैंने पूछा सब्जी कैसी बनी है? उन्होंने बहुत अच्छा में जवाब दिया, ये सुन मुझे हंसी आ गयी। मैंने उनसे कहा आज मैंने नही किसी और ने बनाया है। फ़िर सारी बातें बता दिया और दोनों हंस पड़े....अब उसका इसी शहर में अपना मकान बन गया था, जिसकी गृह प्रवेश की तयारी चल रही थी। गृह प्रवेश के बाद वो पुरे परिवार के साथ अपने मकान में शिफ्ट हो गयी। मैंने कहा थैंक्स गौड....बच गया ...
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