Sunday, 1 February 2009

दीपक की लौ में


दीपक की लौ में
मंजिल तलाश रहा हूँ मैं
अंधेरे को चीरने की कोशिश
करता हीं जा रहा हूँ मैं
जब आतीं है आंधियां बमुश्किल से
सम्भाल रहा हू मैं
दीपक की लौ में
मंजिल तलाश रहा हूँ मैं
कभी तो होगी रौशनी
इसी उमीद में
आगे बढ़ता हीं जा रहा हूँ मैं
दोस्तों की खुशी में
अपनी खुशी तलाश रहा हूँ मैं
दीपक की लौ में
मंजिल तलाश रहा हूँ मैं
अंधेरे में जब लड़खड़ातें हैं कदम
बमुश्किल सम्भाल रहा हूँ मैं
घुटने हो गए हैं घायल फ़िर भी
आगे बढ़ता हीं जा रहा हूँ मैं
कोई तो होगा जो इन घायल
घुटनों को देगा सहारा
इस उम्मीद में बढ़ता ही जा रहा हूँ मैं
दीपक की की लौ में
मंजिल तलाश रहा हूँ मैं......

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