Saturday, 11 April 2009

मेरे यार जुलाहे


मेरे यार जुलाहे
मुझको भी तरकीब बता दे कोई
अक्सर तुझको देखा है ताना बना बुनते
जब कोई धागा टूट गया तो
और सिरा कोई जोड़ के उसमें
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस बाने में लेकिन
एक भी गाँठ गिरह बुनकर की,
देख नहीं सकता कोई
मैंने तो एक बार बुना था
एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ़ नज़र आती है
मेरे यार जुलाहे,
मुझको भी तरकीब बता दे कोई...!

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