
लगातार यह चौथा साल है जब मैंने अपने परिवार
दूर होली बिताया है । लगातार यह चौथा साल है जब मैंने ना ही अपने माँ के चरणों में गुलाल रखे, ना ही अपने पिता को ललाट पर गुलाल लगा आशीर्वाद लिया है। लगातार यह चौथा साल रहा जब मुझे होली पर अपने माँ के हाथों का बना
पुआ से महरूम रहना पड़ा । सच बताऊँ तो होली के दिन घर की बहुत याद आई और पुरे परिवार को मिस किया।
मैं मूलतः बिहार से हूँ जहाँ की इन रीती -रिवाजों स चलन है।
वहां कुछ हो या ना
हो, करीब हर अमीर-गरीब के घर में पुआ- पकवान बनता है। शाम के वक्त पुरूष-महिला अपने-अपने ग्रुप के साथ एक दुसरे के घर जातें हैं। एक दुसरे के साथ रंग गुलाल खेलने के बाद एक साथ बैठकर पुआ-पकवान का आनंद लेतें हैं, एक दुसरे से गले मिल बधाई देतें हैं।
भारत जैसे धर्म प्रधान और त्योहारों वाले देश
में होली एक मात्र त्योहार है, जो किसी देवी देवता का
सहारा लेकर नहीं पहुँचता। यह तो लोक पर्व है, मनुष्यता का पर्व और समाज का पर्व है। इसमें आप समाज को आप सर्वोपरि मानने की घोषणा करतें है। होली की तुलना किसी दुसरे पर्व से नहीं किया जा सकता। यह उन लोगों से पूछ सकतें है जो, जो होली से नफरत करतें हैं या हुडदंग में शामिल होतें हैं। या वो रंग खेलने निकाल पडतें हैं, या घर में छुप कर बैठ जाते हैं। अन्य त्योहारों में ऐसा नहीं होता या इसकी जरुरत नहीं पड़ती। ऐसे प्रेम और नफरत का रिश्ता एक साथ सिर्फ़ होली में ही दीखता है। होली तो भारत के सांस्कृतिक मानस में छुपा है। उस मानस में क्या है ? इसे हुल्लड़ और रंग्पशी रिवाजों से समझा जा सकता है। जब हम होली के दिन सज-सवर के बैठे होतें हैं, दोस्तों और रिश्तेदारों का एक हुजूम आता है और आप को बदशक्ल बना देता है। काले बाल में लाल गुलाल,गोरे चेहरे पर हरे रंग,सफ़ेद कुरते पर कीचड़-मिट्टी से पोत दिया जाता है। बदले में आप हँसते है, नाराज नहीं होते और उन्हें बधाई देतें हैं। बदकिस्मती से इस साल मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। ऐसा इस लिए होता है क्यूंकि हम अच्छे या बुरे रूप में स्वीकार करने के समाज के अधिकार को स्वीकार करते है। होली दरअसल हमें यही समझाती है कि जिंदगी के कई रंग ऐसे हैं, जिनमे डूबने के बाद हम सब एक जैसे होते हैं। हमारी वृतियों में,खुशियों में, मन के भीतर बैठे किसी बच्चे या युवा के नैसर्गिक उल्लास में कोई फर्क नहीं होता।
जब हम बदशक्ल बनाये जाने के डर से अपने ड्राइंग रूम को गन्दा किए जाने से नफरत करते हैं,तो असल में हम उस झूठे अंहकार से घिरे होते हैं। किसी ने हमे रंग लगा दिया,कपड़े गिले कर दिए,भागने को मजबूर कर दिया तो हमारी ठसक, हमारी वह नकली प्रतिष्ठा इज्जत कि कलई खोलती है। लेकिन जरा उन से कोई पूछे तो जब अपने लाडले के गाल पर एक लाल सा टीका कर भला क्यूँ खुश होते हैं ? या किसी भूत सा चेहरा लिए झूम-झूम कर होली
गते लोगों को देखकर हँसी क्यूँ आती है ? जब आपकी प्रेमिका या पत्नी आपके ऊपर चुटकी भर गुलाल फेंक कर भागती है तब,आप भी उन्हें रंग या गुलाल
लेकर उनके पीछे क्यूँ भागते
हैं ? उन्हें
रंग के क्यूँ निहाल हो जाते हैं। खैर मैं इन चीजों से इस साल दूर रहा और शायद असल मुद्दे से भटक गया......
होली के दिन हमारे ही मुहल्ले में रहने वाली एक दोस्त ने मुझे फ़ोन किया। मैंने उससे करीब दो घंटे में आने वादा किया। कुछ बानाने खाने के बाद अपने वादे के मुताबिक छत से पानी फेकने वालों से बचते बचाते उसके यहाँ पहुँच गया। हमलोग बिल्कुल साफ़ सुथरे दिख रहे थे होली का कोई रंग नहीं चढ़ा था। अब हमदोनों ने एक दुसरे को गुलाल लगाकर बधाई दी,और क्रिकेट मैच देखने बैठ गया। थोड़ी देर बाद न
जाने उसके मन में क्या आया कि उसे बहार की होली देखने की ईक्षा जताई। मैंने भी मना नहीं किया और दोनों निकल पड़े। गली में निकलते ही रास्ते में मार पिट हो रही थी , नतीजा वहां से गुजरते वक्त जाने अंजाने मुझे भी एक हाथ लग गया। उस वक्त वहां कोई कुछ सुनने कि भी स्थिति में नहीं था। इसलिए हमदोनो आगे निकलते रहने में ही अपनी भलाई समझी। आगे गली में कहीं तो एकदम सन्नाटा था काही पर ढेर सारे लड़के शोर- शराबा कर रहे
रहे थे। महिलाओं का तो नमो निशान नहीं था। कुछ लड़के तो चड्डी में ऐसे घूम रहे थे जैसे आज उनके सामने सूमो भी नहीं टिक सकता। पानी से पुरी गली गीली होने के कारण हमलोग आराम से बचते हुए चल रहे थे। वहां से गुजते वक्त कुछ लफंगों के टोन भी सहने पड़े लेकिन हमलोग आगे बढते रहने में ही भलाई समझा। गली से गुजरते वक्त एक जगह छत से हमलोगों पर पानी डाला गया। पानी से गीला होने पर उसके मुंह से "ओ शीट"..कि आवाज़ निकल गई। अब उन लड़को ने "इक्को माईक " कि तरह न जाने कितने बार आवाज़ निकाले। अब मैं करीब अपने घर के गली के पास पहुँचने वाला था। तभी एक लड़का दौड़ता हुआ आया और उसके ऊपर गुलाल डालते हुए " हैप्पी होली" कहा। गुस्से में मेरी दोस्त ने पुछा, आप मुझे जानतें है ? पलटकर उसने अंग्रेजी में कहा " व्हाट हैप्पेन, टुडे इज होली " मैंने बीच में आते हुए, उसे अपने साथ ले लिया। वह लड़का ऐसे हंसता हुआ वापस गया जैसे आज उसे कितनी बड़ी सफलता मिली हो। हमलोग अपनी बेवकूफी पर तो पछता रहे थे, लेकिन कोई चारा नहीं था। अब मैं अपने कमरे पर पहुँचने वाला था,और उसके यहाँ वापस जाने स्थिति में भी नहीं था। इस लिए मैंने माहौल शांत होने तक यहाँ ही रुकने को कहा। थोड़ी देर बाद हमलोगों के दो और कॉमन फ्रेंड आ गए। हम चारो ने आपस में थोड़ी देर मस्ती की। थोड़ी ही देर बाद मेरे जानकर दो लड़के नशे धुत आ धमके, और एक ने फोटो खीचा रही फ्रेंड के पास जाकर, साथ फोटो खिचाने की कोशिश करने लगा। मैंने उसे करीब खीचते हुए कमरे से बहार निकलकर छत पर ले गया। वहां पर कुछ समझाने की नाकाम कोशिश के बाद सीधा बहार का रास्ता दिखा दिया। कुल मिलकर रंग में भंग अभी भी जारी थी। अचानक हुई इस घटना से वह इतनी आहात हुई की वो रोने लगी। किसी तरह से समझा बुझा कर हमलोगों ने कार्ड खेलना शुरू कर दिया,ताकि इस मानशिक परेशानी से निकला जा सके। अब बहार में करीब शाम हो चुकी थी और माहौल भी शांत पड़ चुका था। सभीलोग अब अपने अपने घर चले गए।
मैं कमरे में अब अकेले रह गया था। इसलिए अपनी बोरियत दूर करने और होली के रंग में रंगने का एक आईडिया आया। मैंने बैठकर पेंटिंग बनाना शुरू कर दिया और देखते ही देखे करीब तीन-चार घंटों में मैंने एक खुबसूरत सी पेंटिंग बना डाली। जिसमें इन्सान और जानवर के बीच प्यार प्रतीत होता है। मुझे नही पता मैंने अपनी पेंटिंग में
इन्सान और जानवर को ही क्यूँ दिखाया। बस दिल ने कहा और शुरू हो गया। इस तरह मैंने भी रंग तो खेला लेकिन कैनवस के साथ...... कुल मिलकर यह होली भी कभी न भूलने वाली कुछ खट्टी-मिठ्ठी यादों के साथ विदा हो गई......